Thursday, 22 March 2012

मधुमास के आते ही ....


मधुमास के आते ही प्रकृति के स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी में मधु के प्रेमी भंवरों की मानो पौ-बारह है। इन दिनों वे एक-एक कली पर जाकर मंडराते हैं, सबका स्वाद लेते हैं। स्वाद भाया तभी वहां कुछ देर ठहरते हैं, अन्यथा किसी दूसरे फूल की ओर जा उड़ते हैं। नगर कोतवाली के पास खिले इस पुलम के इस पेड़ पर मंडरा रहे इस नटखट भंवरे के इरादे भी कुछ ऐसे ही लगते हैं।

Thursday, 9 February 2012

कभी हम भी गुलजार थे.... (Sometimes we were buzzing ....)

पहाड़ में इस तरह बंजर हो रहे हैं घर....

Sunday, 5 February 2012

Nature from Eco-Tourism Destination-Maheshkhan (Nainital)

Natures Untouched beauty at Maheshkhan
Rain drops on a Pine tree

Bamboo Huts at Maheshkhan

Interior of Bamboo Huts at Maheshkhan

Interior of Bamboo Huts at Maheshkhan


On the way to Maheshkhan

Natures Untouched beauty at Maheshkhan
Maheshkhan : Nature's Untouched beauty

Saturday, 22 October 2011

तुगलक: पागल नहीं था..(Tughlaq: was not crazy ..)



नैनीताल में प्रदर्शित पीरियड नाटक "तुगलक" की कुछ और फोटो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
period drama "Tughlaq" displayed in Nainital.  Click here to see some more photos.

Wednesday, 7 September 2011

जगमग-जगमग झिलमिलाती ताल नैनीताल की (Glittering -shimmering Lake of Nainital...)

यह चित्र नैनीताल के १०८ वें विश्व प्रसिद्द नंदा महोत्सव के दौरान लिया गया है. महोत्सव की कुछ और फोटो यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती हैं.
This picture was taken during Nainital's world famous 108th world famous "Nanda Devi" Festival. Some more photos of the Festival can be viewed by clicking here. 

Friday, 5 August 2011

आड़ू, बेड़ू जैसा नहीं घिंघारू (Ghingharoo is not like Aadu and Bedu)

जी हां, आड़ू व बेड़ू के बाद पहाड़ पर अब घिंघारू (वानस्पतिक नाम पाइरा कैंथा क्रेनुलाटा-Pyracantha crenulata ) की झाडिय़ां भी छोटे-छोटे लाल रंग के फलों से लक-दक हो गई हैं। यहां सरोवरनगरी में नैनी झील किनारे फलों से लाल नजर आ रही इसकी झाडिय़ां सैलानियों को भी आकर्षित कर रही हैं। छोटी झाड़ी होने के बावजूद इसकी लकड़ी की लाठियां व हॉकी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। वहीं कई घरों में इसकी लकड़ी को पवित्र मानते हुए भूत भगाने के विश्वास के साथ भी रखा जाता है। दांत के दर्द में औषधि की तरह दातून के रूप में भी इसका प्रयोग होता है। बच्चे इसके फलों को बड़े चाव से खाते हैं, जबकि इधर रक्त वर्धक औषधि के रूप में इसका जूस भी तैयार किया जाने लगा है।
विदेशों में यह सजावटी पौधे के रूप में "बोंजाई" यानी छोटे आकार में घरों के भीतर भी उगाया जाता है. इसकी पत्तियों को हर्बल चाय बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसकी लकड़ी चलने की छड़ें बनाने के लिए उपयोग की जाती है. सेब की तरह नारंगी लाल फल पक्षियों के भी प्रिय भोजन हैं.
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(On the hills ,Like peach and "Bedhu",  "Ghingaru" (botanical name Pyracantha crenulata) grows on small shrubs - tiny red fruit are filled here in the Lake city-Nainital. These small red fruits are attractive to tourists. Despite its wooden hockey sticks and small shrubs are best known. While many homes were considered holy by the wood is placed with the confidence of exorcism. Brush-like teeth in pain as the drug is also used. The fruits are relished by children, while enhancing drugs over the blood as the juice is being prepared.
In foreign countries,  it's ornamental plants grown like "Bonsai", within the homes. Its leaves are used to make herbal tea. Its wood is used for making walking sticks. Orange-red fruits like apples, are beloved by birds for eating.)

Sunday, 26 June 2011

पहाड़ के फल: ऐसा स्वाद और कहाँ

बूझो तो जानें: कौन-कौन से फल हैं ? 

Wednesday, 18 May 2011

कुमाउनी फल काफल

कुमाउनी फल काफल पहाड़ का बहुत ही लोकप्रिय फल है, इसके बारे में कुमाउनी के आदि कवि लोक रत्न पन्त 'गुमानी' (1791 -1846) जी ने लिखा है: 

खाणा लायक इन्द्र का हम छियाँ,
भूलोक आई पड़ाँ, 
पृथ्वी में लग यो पहाड़ हमारी थाती रचा दैव लै ,
योई चित्त विचारी काफल सबै राता भया क्रोध लै, 
कोई बुड़ा ख़ुड़ा शरम लै काला धुमैला भया.


(काफल कहते हैं, "हम तो (स्वर्ग लोक में)  देवराज इन्द्र के भोजन थे, किन्तु पृथ्वी पर भेज दिए गए, पृथ्वी में भी देवताओं ने हमें पहाड़ पर उत्पन्न कर दिया", यह सोचकर काफल क्रोध से लाल हो गए, उनमें से जो वृद्ध थे वे (क्रोध से ही) सांवले हो गए..)

हिसालू की जात बड़ी रिसालू......

कुमाउनी फल हिसालू कैसा होता हैं, इस बारे में कुमाउनी के आदि कवि लोक रत्न पन्त 'गुमानी' (1791 -1846) जी की सुनिए :
हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे |
यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ |
(यानी हिसालू की नस्ल बड़ी नाराजगी भरी है, जहां-जहां जाता है, बुरी तरह खरोंच देता है, तो भी कोइ इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें खानी ही पड़ती हैं.)

गुमानी को हिंदी का भी आदि कवि कहा जाता है, उन्होंने 1815 में ही हिंदी खड़ी बोली में हिंदी काव्य की रचना की थी. वह हिसालू पर आगे कहते हैं: 
छनाई छन मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में,
पहर चौथा ठंडा बखत जनरौ स्वाद लिंड़ में,
अहो में समझछुं, अमृत लग वास्तु क्या हुनलो ? 
(यानी पर्वतों में तरह-तरह के अनेक रत्न हैं, हिसालू के बूंदों से फल भी ऐसे ही तोहफे हैं, चौथे प्रहार में इनका स्वाद लेना चाहिए, वाह मैं समझता हूँ इसके सामने अमृत का स्वाद भी क्या होगा...)