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Friday, 5 August 2011

आड़ू, बेड़ू जैसा नहीं घिंघारू (Ghingharoo is not like Aadu and Bedu)

जी हां, आड़ू व बेड़ू के बाद पहाड़ पर अब घिंघारू (वानस्पतिक नाम पाइरा कैंथा क्रेनुलाटा-Pyracantha crenulata ) की झाडिय़ां भी छोटे-छोटे लाल रंग के फलों से लक-दक हो गई हैं। यहां सरोवरनगरी में नैनी झील किनारे फलों से लाल नजर आ रही इसकी झाडिय़ां सैलानियों को भी आकर्षित कर रही हैं। छोटी झाड़ी होने के बावजूद इसकी लकड़ी की लाठियां व हॉकी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। वहीं कई घरों में इसकी लकड़ी को पवित्र मानते हुए भूत भगाने के विश्वास के साथ भी रखा जाता है। दांत के दर्द में औषधि की तरह दातून के रूप में भी इसका प्रयोग होता है। बच्चे इसके फलों को बड़े चाव से खाते हैं, जबकि इधर रक्त वर्धक औषधि के रूप में इसका जूस भी तैयार किया जाने लगा है।
विदेशों में यह सजावटी पौधे के रूप में "बोंजाई" यानी छोटे आकार में घरों के भीतर भी उगाया जाता है. इसकी पत्तियों को हर्बल चाय बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसकी लकड़ी चलने की छड़ें बनाने के लिए उपयोग की जाती है. सेब की तरह नारंगी लाल फल पक्षियों के भी प्रिय भोजन हैं.
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(On the hills ,Like peach and "Bedhu",  "Ghingaru" (botanical name Pyracantha crenulata) grows on small shrubs - tiny red fruit are filled here in the Lake city-Nainital. These small red fruits are attractive to tourists. Despite its wooden hockey sticks and small shrubs are best known. While many homes were considered holy by the wood is placed with the confidence of exorcism. Brush-like teeth in pain as the drug is also used. The fruits are relished by children, while enhancing drugs over the blood as the juice is being prepared.
In foreign countries,  it's ornamental plants grown like "Bonsai", within the homes. Its leaves are used to make herbal tea. Its wood is used for making walking sticks. Orange-red fruits like apples, are beloved by birds for eating.)